Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 16
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिपदा भुरिक् महाबृहती छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    अ॑पू॒पवा॑न्क्षी॒रवां॑श्च॒रुरेह सी॑दतु। लो॑क॒कृतः॑ पथि॒कृतो॑ यजामहे॒ येदे॒वानां॑ हु॒तभा॑गा इ॒ह स्थ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अ॒पू॒पऽवा॑न् । क्षी॒रऽवा॑न् । च॒रु: । आ । इ॒ह । सी॒द॒तु॒ । लो॒क॒ऽकृत॑: । प॒थि॒ऽकृत॑: । य॒जा॒म॒हे॒ । ये । दे॒वाना॑म् । हु॒तऽभा॑गा: । इ॒ह । स्थ ॥ ४.१६॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अपूपवान्क्षीरवांश्चरुरेह सीदतु। लोककृतः पथिकृतो यजामहे येदेवानां हुतभागा इह स्थ ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अपूपऽवान् । क्षीरऽवान् । चरु: । आ । इह । सीदतु । लोकऽकृत: । पथिऽकृत: । यजामहे । ये । देवानाम् । हुतऽभागा: । इह । स्थ ॥ ४.१६॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 16

    पदार्थ -
    (अपूपवान्) अपूपों [शुद्ध पके हुए भोजनों मालपूए पूड़ी आदि]वाला, (क्षीरवान्) दूधवाला (चरुः)चरु [स्थालीपाक] (इह) यहाँ [वेदी पर] (आ सीदतु) आवे। (लोककृतः) समाजों केकरनेवाले, (पथिकृतः) मार्गों के बनानेवाले [तुम लोगों] को (यजामहे) हम पूजतेहैं, (ये) जो तुम (देवानाम्) विद्वानों के बीच (हुतभागाः) भाग लेनेवाले (इह)यहाँ पर (स्थ) हो ॥१६॥

    भावार्थ - यजमान को योग्य है किविद्वानों को सत्कारपूर्वक बुलाकर शुद्ध, सुगन्धित, पुष्टिकारक मोहनभोगमालपूए आदि पदार्थों के स्थालीपाक से यज्ञ करे ॥१६॥इस मन्त्र का उत्तर भाग आचुका है-अ० १८।३।२५-३५ ॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top