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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 37
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    इ॒दं कसा॑म्बु॒चय॑नेन चि॒तं तत्स॑जाता॒ अव॑ पश्य॒तेत॑। मर्त्यो॒ऽयम॑मृत॒त्वमे॑ति॒ तस्मै॑गृ॒हान्कृ॑णुत याव॒त्सब॑न्धु ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    इ॒दम् । कसा॑म्बु । चय॑नेन । चि॒तम् । तत् । स॒ऽजा॒ता॒: । अव॑ । प॒श्य॒त॒ । आ । इ॒त॒ । मर्त्य॑: । अ॒यम् । अ॒मृ॒त॒ऽत्वम् । ए॒ति॒ । तस्मै॑ । गृ॒हान् । कृ॒णु॒त॒ । या॒व॒त्ऽसब॑न्धु ॥४.३७॥


    स्वर रहित मन्त्र

    इदं कसाम्बुचयनेन चितं तत्सजाता अव पश्यतेत। मर्त्योऽयममृतत्वमेति तस्मैगृहान्कृणुत यावत्सबन्धु ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    इदम् । कसाम्बु । चयनेन । चितम् । तत् । सऽजाता: । अव । पश्यत । आ । इत । मर्त्य: । अयम् । अमृतऽत्वम् । एति । तस्मै । गृहान् । कृणुत । यावत्ऽसबन्धु ॥४.३७॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 37

    पदार्थ -
    (इदम्) यह (कसाम्बु)शासन का कीर्तन (चयनेन) इकट्ठा करने से (चितम्) इकट्ठा किया गया है, (सजाताः) हेसजातियो ! (तत्) उस को (अव पश्यत) ध्यान से देखो और (आ) सब ओर से (इत) प्राप्तकरो। (अयम्) यह (मर्त्यः) मनुष्य (अमृतत्वम्) अमरपन (एति) पाता है। (यावत्सबन्धु) जितने तुम समान गोत्रवाले [अर्थात् सपिण्डी] हो सब मिलकर (तस्मै)उस [पुरुष] के लिये (गृहान्) घरों को (कृणुत) बनाओ ॥३७॥

    भावार्थ - संसार में गौ आदिउपकारी जीव और बड़े-बड़े घर आदि स्थान युक्ति के साथ क्रम-क्रम से ठीक होते हैं, मनुष्य यह विचार कर उन्नति करें। मनुष्य इसी प्रकार श्रेष्ठ कामों से यश पाता हैऔर सब कुटुम्बी आदि उस का सहाय करते हैं ॥३७॥

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