Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 83
    सूक्त - पितरगण देवता - साम्नी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    नमो॑ वः पितरो॒यद्घो॒रं तस्मै॒ नमो॑ वः पितरो॒ यत्क्रू॒रं तस्मै॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    नम॑:। व॒: । पि॒त॒र॒: । यत‌् । घो॒रम् । तस्मै॑ । नम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । यत् । क्रू॒रम् । तस्मै॑ ॥४.८३॥


    स्वर रहित मन्त्र

    नमो वः पितरोयद्घोरं तस्मै नमो वः पितरो यत्क्रूरं तस्मै ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    नम:। व: । पितर: । यत‌् । घोरम् । तस्मै । नम: । व: । पितर: । यत् । क्रूरम् । तस्मै ॥४.८३॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 83

    पदार्थ -
    (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (यत्) जो कुछ (घोरम्) घोर [दारुण दुःख] है, (तस्मै) उसे हटानेके लिये (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो, (पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (यत्) जो कुछ (क्रूरम्) क्रूर [निर्दयता] है, (तस्मै) उसे दूर करने के लिये (वः)तुम को (नमः) नमस्कार हो ॥८३॥

    भावार्थ - मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top