Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 65
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    अभू॑द्दू॒तःप्रहि॑तो जा॒तवे॑दाः सा॒यं न्यह्न॑ उप॒वन्द्यो॒ नृभिः॑। प्रादाः॑ पि॒तृभ्यः॑स्व॒धया॒ ते अ॑क्षन्न॒द्धि त्वं दे॑व॒ प्रय॑ता ह॒वींषि॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    अभू॑त् । दू॒त: । प्रऽहि॑त: । जा॒तऽवे॑दा: । सा॒यम् । नि॒ऽअह्ने॑ । उ॒प॒ऽवन्द्य॑: । नृऽभि॑: । प्र । अ॒दा॒: । पि॒तृऽभ्य॑: । स्व॒धया॑ । ते । अ॒क्ष॒न् । अ॒ध्दि । त्वम् । दे॒व॒ । प्रऽय॑ता । ह॒वींषि॑ ॥४.६५॥


    स्वर रहित मन्त्र

    अभूद्दूतःप्रहितो जातवेदाः सायं न्यह्न उपवन्द्यो नृभिः। प्रादाः पितृभ्यःस्वधया ते अक्षन्नद्धि त्वं देव प्रयता हवींषि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    अभूत् । दूत: । प्रऽहित: । जातऽवेदा: । सायम् । निऽअह्ने । उपऽवन्द्य: । नृऽभि: । प्र । अदा: । पितृऽभ्य: । स्वधया । ते । अक्षन् । अध्दि । त्वम् । देव । प्रऽयता । हवींषि ॥४.६५॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 65

    पदार्थ -
    (दूतः) चलनेवाला [उद्योगी] (प्रहितः) बड़ा हितकारी (जातवेदाः) महाज्ञानी [वा महाधनी] पुरुष (सायम्) सायंकाल में और (न्यह्ने) प्रातःकाल में (नृभिः) नेताओं करके (उपवन्द्यः) बहुत प्रशंसनीय (अभूत्) हुआ है। [इसलिये] (पितृभ्यः) पितरों [रक्षकमहात्माओं] को (स्वधया) अपनी धारण शक्ति से (प्रयता) शुद्ध [वा प्रयत्न से सिद्धकिये] (हवींषि) ग्रहण करने योग्य भोजन (प्र) अच्छे प्रकार (अदाः) तूने दियेहैं, (ते) उन्होंने (अक्षन्) खाये हैं, (देव) हे विद्वान् ! (त्वम्) तू (अद्धि)खा ॥६५॥

    भावार्थ - उद्योगी, हितकारीविद्वान् लोग सदा से बड़े लोगों के माननीय हुए हैं, इसलिये मनुष्य भोजन आदि सेविद्वानों का सत्कार करके अपनी रक्षा करें और कीर्ति बढ़ावें ॥६५॥इस मन्त्र काउत्तरार्द्ध ऊपर आचुका है-अ० १८।३।४२। और पूर्वार्द्ध का मिलान करो-ऋग्० ४।५४।१॥

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top