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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 85
नमो॑ वः पितरःस्व॒धा वः॑ पितरः ॥
स्वर सहित पद पाठनम॑: । व॒: । पि॒त॒र॒: । स्व॒धा । व॒: । पि॒त॒र॒: ॥४.८५॥
स्वर रहित मन्त्र
नमो वः पितरःस्वधा वः पितरः ॥
स्वर रहित पद पाठनम: । व: । पितर: । स्वधा । व: । पितर: ॥४.८५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 85
विषय - पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थ -
(पितरः) हे पितरो ! [पालक ज्ञानियो] (वः) तुम को (नमः) नमस्कार हो, (पितरः) हे पितरो ! [पालकज्ञानियो] (वः) तुम्हारे लिये (स्वधा) अन्न हो ॥८५॥
भावार्थ - मनुष्यों को चाहिये किपराक्रम आदि शुभ गुणों की प्राप्ति के लिये और क्रोध आदि दुर्गुणों की निवृत्तिके लिये ज्ञानी पितरों का अनेक प्रकार सत्कार करके सदुपदेश ग्रहण करें॥८१-८५॥८१-८५ इन मन्त्रों का मिलान करो-यजुर्वेद २।३२ तथा महर्षिदयानन्दकृत ऋग्वेदादिभाष्यभूमिका पितृयज्ञविषय ॥
टिप्पणी -
८५−(स्वधा) अन्नम्। अन्यत् पूर्ववत् ॥