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  • अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 78
    सूक्त - यम, मन्त्रोक्त देवता - आसुरी त्रिष्टुप् छन्दः - अथर्वा सूक्तम् - पितृमेध सूक्त

    स्व॒धापि॒तृभ्यः॑ पृथिवि॒षद्भ्यः॑ ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    स्व॒धा । पि॒तृऽभ्य॑: । पृ॒थि॒वि॒सत्ऽभ्य॑: ॥४.७८॥


    स्वर रहित मन्त्र

    स्वधापितृभ्यः पृथिविषद्भ्यः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    स्वधा । पितृऽभ्य: । पृथिविसत्ऽभ्य: ॥४.७८॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 78

    पदार्थ -
    (पृथिविषद्भ्यः)पृथिवी की विद्या में गतिवाले (पितृभ्यः) पितरों [पालक ज्ञानियों] को (स्वधा)अन्न हो ॥७८॥

    भावार्थ - जो पितर पण्डित लोगपृथिवी अर्थात् राज्यविद्या, भूगर्भविद्या आदि में चतुर हों, जो ज्योतिषी आकाशविद्या अर्थात् सौरमण्डल, तारामण्डल, वायुमण्डल आदि विद्या में दक्ष हों और जोमहापुरुष अन्य व्यवहारों अर्थात् संग्रामविद्या, धर्मशिक्षा आदि विद्या मेंगुणी होवें, सब मनुष्य ऐसे महात्माओं का सदा आदर करते रहें॥७८-८०॥

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