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अथर्ववेद - काण्ड 18/ सूक्त 4/ मन्त्र 75
सूक्त - यम, मन्त्रोक्त
देवता - आसुरी गायत्री
छन्दः - अथर्वा
सूक्तम् - पितृमेध सूक्त
ए॒तत्ते॑प्रततामह स्व॒धा ये च॒ त्वामनु॑ ॥
स्वर सहित पद पाठए॒तत् । ते॒ । प्र॒ऽत॒ता॒म॒ह॒ । स्व॒धा । ये । च॒ । त्वाम् । अनु॑ ॥४.७५॥
स्वर रहित मन्त्र
एतत्तेप्रततामह स्वधा ये च त्वामनु ॥
स्वर रहित पद पाठएतत् । ते । प्रऽततामह । स्वधा । ये । च । त्वाम् । अनु ॥४.७५॥
अथर्ववेद - काण्ड » 18; सूक्त » 4; मन्त्र » 75
विषय - पितरों के सन्मान का उपदेश।
पदार्थ -
(प्रततामह) हे परदादे ! (एतत्) यहाँ (ते) तेरे लिये (स्वधा) अन्न हो, (च) और [उन के लिये भी अन्न हो] (ये) जो (त्वाम् अनु) तेरे साथ हैं ॥७५॥
भावार्थ - सन्तानों को चाहिये किबड़ों से आरम्भ करके परदादी परदादा, दादी दादा, माता-पिता आदि मान्यों की अन्न आदिसे सेवा करके उत्तम शिक्षा और आशीर्वाद पावें ॥७५-७७॥
टिप्पणी -
७५−(एतत्) अत्र (ते)तुभ्यम् (प्रततामह) तनु विस्तारे-क्त। तत इति सन्ताननाम पितुर्वा पुत्रस्यवा-निरु० ६।६। पितृव्यमातुलमातामहपितामहाः। पा० ४।२।३६। प्रतत-डामहच्, बाहुलकात्। हे प्रपितामह (स्वधा) अन्नम् (ये) (च) तेभ्यश्च (त्वाम्) (अनु)अनुसृत्य वर्तन्ते ॥