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  • यजुर्वेद - अध्याय 12/ मन्त्र 113
    ऋषिः - गोतम ऋषिः देवता - सोमो देवता छन्दः - भुरिगार्षी पङ्क्तिः स्वरः - पञ्चमः
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    सं ते॒ पया॑सि समु॑ यन्तु॒ वाजाः॒ सं वृष्ण्या॑न्यभिमाति॒षाहः॑। आ॒प्याय॑मानोऽअ॒मृता॑य सोम दि॒वि श्रवा॑स्युत्त॒मानि॑ धिष्व॥११३॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सम्। ते॒। पया॑सि। सम्। ऊँ इत्यूँ॑। य॒न्तु॒। वाजाः॑। सम्। वृष्ण्या॑नि। अ॒भि॒मा॒ति॒षाहः॑। अ॒भि॒मा॒ति॒सह॒ इत्य॑भिमाति॒ऽसहः॑। आ॒प्याय॑मान॒ इत्या॒ऽप्याय॑मानः। अ॒मृता॑य। सो॒म॒। दि॒वि। श्रवा॑सि। उ॒त्त॒मानीत्यु॑त्ऽत॒मानि॑। धि॒ष्व॒ ॥११३ ॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सन्ते पयाँसि समु यन्तु वाजाः सँवृष्ण्यान्यभिमातिषाहः । आप्यायमानो अमृताय सोम दिवि श्रवाँस्युत्तमानि धिष्व ॥


    स्वर रहित पद पाठ

    सम्। ते। पयासि। सम्। ऊँ इत्यूँ। यन्तु। वाजाः। सम्। वृष्ण्यानि। अभिमातिषाहः। अभिमातिसह इत्यभिमातिऽसहः। आप्यायमान इत्याऽप्यायमानः। अमृताय। सोम। दिवि। श्रवासि। उत्तमानीत्युत्ऽतमानि। धिष्व॥११३॥

    यजुर्वेद - अध्याय » 12; मन्त्र » 113
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    शब्दार्थ -
    शब्दार्थ - हे (ओम) शांत स्वभाव असलेले मान्यवर महोदय (ते) तुम्हाला (पयांसि) यथेष्ट जल वा दूध (संयन्तु) मिळो (अभिमातिषाह:) गर्विष्ठ शत्रूंना देखील पराभूत करण्यात समर्थ असलेले (वाजा:) धनुर्वेदविज्ञान (सम्‌) तुम्हाला प्राप्त होवो (उ) आणि (वृष्ण्यानि) हृदयात पराक्रम दाखविण्याची ऊर्ज्ञी (सम्‌) प्राप्त व्हावी. अशाप्रकारे (आप्यायमान:) चांगल्याप्रकारे प्रगती करीत आपण (दिवि) प्रकाशस्वरूप परमेश्‍वरात (अमृताय) मोक्षस्थिती प्राप्त करण्यासाठी (उत्तमानि) (श्रवांसि) उत्तम वाणी अथवा उत्तम अन्न (धिष्व) धारण करा (अशी आम्हा हितैषीजनांची तुमच्यासाठी शुभेच्छा आहे) ॥113॥

    भावार्थ - भावार्थ - जी माणसे शारीरिक आणि आत्मिक बळ नित्य वाढवतात, ती योगाभ्यासाद्वारे परमेश्‍वरास प्राप्त करून मोक्षातील आनंद उपभोगतात ॥113॥

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