Loading...

काण्ड के आधार पर मन्त्र चुनें

  • अथर्ववेद का मुख्य पृष्ठ
  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 1/ मन्त्र 34
    सूक्त - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - त्र्यवसाना षट्पदा त्रिष्टुब्बृगतीगर्भातिजगती सूक्तम् - भूमि सूक्त

    यच्छया॑नः प॒र्याव॑र्ते॒ दक्षि॑णं स॒ख्यम॒भि भू॑मे पा॒र्श्वम्। उ॒त्ता॒नास्त्वा॑ प्र॒तीचीं॒ यत्पृ॒ष्टीभि॑रधि॒शेम॑हे। मा हिं॑सी॒स्तत्र॑ नो भूमे॒ सर्व॑स्य प्रतिशीवरि ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यत् । शया॑न: । प॒रि॒ऽआव॑र्ते । दक्षि॑णम् । स॒व्यम् । अ॒भि । भू॒मे॒ । पा॒र्श्वम् । उ॒त्ता॒ना: । त्वा॒ । प्र॒तीची॑म् । यत् । पृ॒ष्टीभि॑: । अ॒धि॒ऽशेम॑हे । मा । हिं॒सी॒: । तत्र॑ । न॒: । भू॒मे॒ । सर्व॑स्य । प्र॒ति॒ऽशी॒व॒रि॒ ॥१.३४॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यच्छयानः पर्यावर्ते दक्षिणं सख्यमभि भूमे पार्श्वम्। उत्तानास्त्वा प्रतीचीं यत्पृष्टीभिरधिशेमहे। मा हिंसीस्तत्र नो भूमे सर्वस्य प्रतिशीवरि ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यत् । शयान: । परिऽआवर्ते । दक्षिणम् । सव्यम् । अभि । भूमे । पार्श्वम् । उत्ताना: । त्वा । प्रतीचीम् । यत् । पृष्टीभि: । अधिऽशेमहे । मा । हिंसी: । तत्र । न: । भूमे । सर्वस्य । प्रतिऽशीवरि ॥१.३४॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 34

    पदार्थ -

    १. हे (भूमे) = भूमिमात: ! (यत्) = जब (शयान:) = लेटा हुआ मैं (दक्षिणं सव्यं पाशवम् अभि) = दाहिने या बायें पासे की ओर (पर्यावर्ते) = करवट लूँ अथवा (यत्) = जब हम (उत्ताना:) = ऊर्ध्वमुख (प्रतीची त्वा) = जिसके पश्चिम की ओर हमारे पाँव हैं, ऐसी तुझपर (पृष्टीभिः) = पीठ के मोहरों के बल पर (अधिशेमहे) = शयन करते हैं, तब (तत्र) = वहाँ, हे (भूमे) = भूमिमातः! (न: मा हिंसी:) = हमें हिंसित मत कर । (सर्वस्व प्रतिशीवरि) = तू तो सबको अपनी गोद में सुलानेवाली जननी है। हे जननि! तू हमें हिंसित न होने देना।

    भावार्थ -

    हम समय पर भूमि माता की गोद में सुखपूर्वक शयन करें।

    सूचना -

    यहाँ यह स्पष्ट है कि [क] यथासम्भव नीचे सोना। [ख] पाँव पश्चिम में हो। [ग] सदा एक पासे नहीं लेटे रहना। [घ] कभी कभी उत्तान शयन भी आवश्यक है।

    इस भाष्य को एडिट करें
    Top