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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 1/ मन्त्र 49
    सूक्त - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - जगती सूक्तम् - भूमि सूक्त

    ये त॑ आर॒ण्याः प॒शवो॑ मृ॒गा वने॑ हि॒ताः सिं॒हा व्या॒घ्राः पु॑रु॒षाद॒श्चर॑न्ति। उ॒लं वृकं॑ पृथिवि दु॒च्छुना॑मि॒त ऋ॒क्षीकां॒ रक्षो॒ अप॑ बाधया॒स्मत् ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    ये । ते । आ॒र॒ण्या: । प॒शव॑: । मृ॒गा: । वने॑ । हि॒ता: । सिं॒हा: । व्या॒घ्रा । पु॒रु॒ष॒ऽअद॑: । चर॑न्ति । उ॒लम् । वृक॑म् । पृ॒थि॒व‍ि॒ । दु॒च्छुना॑म् । इ॒त: । ऋ॒क्षीका॑म् । रक्ष॑: । अप॑ । बा॒ध॒य॒ । अ॒स्मत् ॥१.४९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    ये त आरण्याः पशवो मृगा वने हिताः सिंहा व्याघ्राः पुरुषादश्चरन्ति। उलं वृकं पृथिवि दुच्छुनामित ऋक्षीकां रक्षो अप बाधयास्मत् ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    ये । ते । आरण्या: । पशव: । मृगा: । वने । हिता: । सिंहा: । व्याघ्रा । पुरुषऽअद: । चरन्ति । उलम् । वृकम् । पृथिव‍ि । दुच्छुनाम् । इत: । ऋक्षीकाम् । रक्ष: । अप । बाधय । अस्मत् ॥१.४९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 49

    पदार्थ -

    १.हे भूमिमातः! (ये) = जो (ते) = तेरे (आरण्याः पशव) = जंगली पशु हैं, (वने हिता:) = वनों में स्थापित (मृगा:) = मृग है [जो ग्रामों में आकर खेतियों को विनष्ट कर देते हैं], जो पुरुषादः मनुष्यों को भी खा जानेवाले (सिंहा: व्याघ्रा:) = शेर व चीते चरन्ति-इधर-उधर घूमते हैं [चिड़ियाघर में रखे हुए नहीं]। इसी प्रकार (उलम्) = सियार [A kind of wild animal] (वृकम्) = भेड़िया, (दुच्छूनाम्) = दुष्ट कुत्ते, (ऋक्षीकाम्) = रीछ आदि को (इत:) = यहाँ से (अपबाधय) = दूर कर। २. यह (पृथिवि) = पृथिवी (रक्षः) = राक्षसीवृत्ति के पुरुषों को अथवा अपने रमण के लिए औरों का क्षय करनेवाले रोगकृमियों को (अस्मत्) = हमसे दूर ही रोक दे।

    भावार्थ -

    राजा आरण्य पशुओं से प्रजा की रक्षा करे। इस बात का ध्यान करे कि मृग ही खेतियों को न चर जाएँ। सियार, भेड़िये, पागल कुत्ते आदि के उपद्रव न हों। रोछ व रोगकृमि हमसे दूर रहें।

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