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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 1/ मन्त्र 40
    सूक्त - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - अनुष्टुप् सूक्तम् - भूमि सूक्त

    सा नो॒ भूमि॒रा दि॑शतु॒ यद्धनं॑ का॒मया॑महे। भगो॑ अनु॒प्रयु॑ङ्क्ता॒मिन्द्र॑ एतु पुरोग॒वः ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    सा । न॒: । भूमि॑: । आ । दि॒श॒तु॒ । यत् । धन॑म् । का॒मया॑महे । भग॑: । अ॒नु॒ऽप्रयु॑ङ्क्ताम् । इन्द्र॑: । ए॒तु॒ । पु॒र॒:ऽग॒व: ॥१.४०॥


    स्वर रहित मन्त्र

    सा नो भूमिरा दिशतु यद्धनं कामयामहे। भगो अनुप्रयुङ्क्तामिन्द्र एतु पुरोगवः ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    सा । न: । भूमि: । आ । दिशतु । यत् । धनम् । कामयामहे । भग: । अनुऽप्रयुङ्क्ताम् । इन्द्र: । एतु । पुर:ऽगव: ॥१.४०॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 40

    पदार्थ -

    १. (सा भूमि:) = वह, गतमन्त्र के अनुसार यज्ञों व तपोवाली भूमि (न:) = हमारे लिए (यत् धनं कामयामहे) = जिस धन की कामना करे, उस धन को (आदिशतु) = सर्वथा प्रदान करे। (भग:) = वह भजनीय प्रभु (अनुप्रयुक्ताम्) = हमें शिक्षित करे [to give instruction]-हम प्रभु के निर्देश में चलें। (इन्द्रः) = वह शत्रुविद्रावक प्रभु ही (पुरोगवः एतु) = हमारा (अग्रगामी) = हो-हम प्रभु के अनुयायी बनें।

    भावार्थ -

    जिस राष्ट्र में यज्ञ व तप का प्राधान्य होता है, वहाँ सब इष्ट धन प्राप्त होते हैं। हम तो यही चाहें कि प्रभु हमें मार्ग का निर्देश करें और हमारे पुरोगामी हों-हम प्रभु के अनुयायी बनें।

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