अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 1/ मन्त्र 26
शि॒ला भूमि॒रश्मा॑ पां॒सुः सा भूमिः॒ संधृ॑ता धृ॒ता। तस्यै॒ हिर॑ण्यवक्षसे पृथि॒व्या अ॑करं॒ नमः॑ ॥
स्वर सहित पद पाठशि॒ला । भूमि॑: । अश्मा॑ । पां॒सु: । सा । भूमि॑: । सम्ऽधृ॑ता । धृ॒ता । तस्यै॑ । हिर॑ण्यऽवक्षसे । पृ॒थि॒व्यै । अ॒क॒र॒म् । नम॑: ॥२.२६॥
स्वर रहित मन्त्र
शिला भूमिरश्मा पांसुः सा भूमिः संधृता धृता। तस्यै हिरण्यवक्षसे पृथिव्या अकरं नमः ॥
स्वर रहित पद पाठशिला । भूमि: । अश्मा । पांसु: । सा । भूमि: । सम्ऽधृता । धृता । तस्यै । हिरण्यऽवक्षसे । पृथिव्यै । अकरम् । नम: ॥२.२६॥
अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 26
विषय - शिला, भूमिः, अश्मा, पांसुः
पदार्थ -
१. यह पृथिवी कहीं (शिला) = शिला के रूप में है। ये शिलाएँ मकान आदि बनाने में उपयुक्त होती हैं। (भूमिः) = कहीं मैदानों के रूप में है, जहाँ कृषि से विविध अन्न उत्पन्न होते हैं। (अश्मा) = कहीं यह पत्थर-ही-पत्थर है, जिन्हें तोड़कर सड़कों व फर्श आदि के निर्माण में उपयुक्त किया जाता है। (पांसुः) = कहीं यह भूमि धूल के रूप में है, जिसे तेज वायु उड़ाकर आकाश में पहुँचा देती है और वहाँ यह मेघ के जलबिन्दुओं का केन्द्र बनती है। (सा भूमि:) = यह प्राणियों का निवासस्थानरूप पृथिवी (संधृता) = सम्यक् धारण की गई है, (धृता) = प्रभु ने इसे मर्यादा में स्थापित किया है। २. (तस्मै) = उस (हिरण्यवक्षसे) = हिरण्य को वक्षस्थल में लिये हुई, (पृथिव्यै) = पृथिवी के लिए (नमः अकरम्) = हम आदर करते हैं। 'इसको माता समझना तथा इससे दिये गये वानस्पतिक पदार्थों का ही प्रयोग करना' इसका आदर है।
भावार्थ -
यह पृथिवी 'शिलाओं, मैदानों, पत्थरों व धूलि' के भिन्न-भिन्न रूपों में है। प्रभु से धारित व मर्यादा में स्थापित की गई है। इस हिरण्यवक्षा पृथिवी के लिए हम नमस्कार करते हैं।
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