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  • अथर्ववेद - काण्ड 12/ सूक्त 1/ मन्त्र 9
    सूक्त - अथर्वा देवता - भूमिः छन्दः - परानुष्टुप्त्रिष्टुप् सूक्तम् - भूमि सूक्त

    यस्या॒मापः॑ परिच॒राः स॑मा॒नीर॑होरा॒त्रे अप्र॑मादं॒ क्षर॑न्ति। सा नो॒ भूमि॒र्भूरि॑धारा॒ पयो॑ दुहा॒मथो॑ उक्षतु॒ वर्च॑सा ॥

    स्वर सहित पद पाठ

    यस्या॑म् । आप॑: । प॒रि॒ऽच॒रा: । स॒मा॒नी: । अ॒हो॒रा॒त्रे इति॑ । अप्र॑ऽमादम् । क्षर॑न्ति । सा । न॒: । भूमि॑: । भूरि॑ऽधारा । पय॑: । दु॒हा॒म् । अथो॒ इति॑ । उ॒क्ष॒तु॒ । वर्च॑सा ॥१.९॥


    स्वर रहित मन्त्र

    यस्यामापः परिचराः समानीरहोरात्रे अप्रमादं क्षरन्ति। सा नो भूमिर्भूरिधारा पयो दुहामथो उक्षतु वर्चसा ॥

    स्वर रहित पद पाठ

    यस्याम् । आप: । परिऽचरा: । समानी: । अहोरात्रे इति । अप्रऽमादम् । क्षरन्ति । सा । न: । भूमि: । भूरिऽधारा । पय: । दुहाम् । अथो इति । उक्षतु । वर्चसा ॥१.९॥

    अथर्ववेद - काण्ड » 12; सूक्त » 1; मन्त्र » 9

    पदार्थ -

    १. (यस्याम्) = जिस पृथिवी पर (आप:) = जल (परिचरा:) = चारों ओर गतिवाले हैं-सर्वत्र उपलभ्य हैं तथा (समानी:) = [सम् अन्] सम्यक् प्राणित करनेवाले हैं [अपोमयाः प्राणा:]। ये जल (आहोरात्रे) = दिन-रात (अप्रमादं क्षरन्ति) = प्रमादशून्य होकर संचलित हो रहे हैं। २. (सा) = वह भूरिधारा अनन्त अथवा पालक व पोषक धाराओंवाली (भूमि:) = पृथिवी (न:) = हमारे लिए (पयः) = दुग्ध का आप्यायन करनेवाली वस्तुओं का (दुहाम्) = प्रपूरण करे । (अथो) = और दुग्ध के प्रपूरण के द्वारा (वर्चसा उक्षतु) = वर्चस् से सिक्त करे-हमें यह शक्तिशाली बनाए।

    भावार्थ -

    इस पृथिवी पर प्राणशक्तिप्रद जल चारों दिशाओं में बह रहे हैं। यह पृथिवी हमारे लिए दुग्ध के प्रपूरण के द्वारा शक्ति का सेचन करनेवाली बनती है।

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