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अथर्ववेद के काण्ड

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चारों वेदों के क्रम में अथर्ववेद अन्तिम है। इसके अन्य नाम छन्द वेद (छन्दांसि), अथर्वाङ्गिरस तथा ब्रह्मवेद हैं। 'थर्व' धातु का अर्थ चलना, विचलित होना है। इस का निषेधात्मक अथर्व-निश्चल रहना है। निश्चल, अपरिवर्तनीय परमात्मा का अविनश्वर ज्ञान अथर्ववेद है। 'छन्द' आनन्द का वाचक है, अत: जिसका अध्ययन आनन्दप्रद है, इसलिए अथर्ववेद छन्दवेद कहलाता है। अंगिरा ऋषि को प्राप्त होने से इसे अथर्वाङ्गिरस वेद भी कहा जाता है। ब्रह्म की सर्वत्र चर्चा होने से इसे ब्रह्मवेद की संज्ञा मिली। अथर्ववेद में 20 काण्ड, 731 सूक्त एवं 5977 मन्त्र हैं।

अथर्ववेद की ऋचाओं का विवरण

अथर्ववेद के उपलब्ध भाष्य

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